Tuesday, May 10, 2005

चमक उठी सन सत्तावन में ....

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी

बूढे भारत में भी आई फ़िर से नई जवानी थी ।

गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी

दूर फ़िरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी ॥

these are the opening lines of Subhadrakumari Chauhan's epic poem titled 'झाँसी की रानी', not just a biographical sketch on Rani Lakshmibai of Jhansi, but also a fascinating sketch of the Mutiny of 1857, the first freedom struggle against the British in India. Today marks the 148th anniversary of the day when the sepoys first broke ranks and raised arms against their British commanding officers in Meerut. No surprises therefore that Sepia Mutiny carries this story! Wikipedia has the details on the uprising. The rebellion lasted just longer than a year, and was ofcourse put down by the British. Although the first real movement against the British, it was such a body blow to anyone harboring thoughts of revolt that it was not until the early part of the twentieth century that there was any serious organized effort to dislodge the British, and more than 90 years since the first revolt that these efforts finally culminated.

The Mutiny however has firmly taken its place in Indian history, alongwith the martyrs from that uprising - including Mangal Pandey, Rani Lakshmibai of Jhansi and Tatya Tope. 2005 will also see the release of The Rising, starring Aamir Khan in his first release since the Dil Chahta Hai and Lagaan in 2001. Based on press coverage so far, it certainly a movie to look forward to. I will leave you with a few more lines from Chauhan's masterpiece, snippets from the Mutiny:

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौसी मन में हर्षाया
राज्य हडप करने का उसने यह अच्छा औसर पाया ।
फ़ौरन फ़ौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया ॥
[Viceroy Lord Dalhousie's ploy of annexing princely states that did not have an heir, including Jhansi]
.....

महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
[The mutiny spread rapidly .... and soon enveloped most a lot of princely states, including Delhi]
.....

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।

ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
[Lakshmibai's victories in the Mutiny]
....

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।

पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
[The English recoup and come chasing her down ... Hugh Rose is leading the charge against her]
....


रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,

दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
[She died valiantly, but showed the way to fight for freedom ... just 23, but the role model for generations to come]

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।

तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
[India will always remember her .... ]

The full poem is available here.

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